1857 की क्रांति की असफलता के कारण :
(1) राजस्थान के राजाओं ने अंग्रेजों के प्रति अपनी झुकने की प्रवृत्ति का परिचय दिया। जयपुर अलवर भरतपुर, धौलपुर, करौली, सिरोही, टॉक, बीकानेर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ के शासकों ने विप्लव की आंधी को रोकने के लिए ब्रिटिश सत्ता को सहयोग दिया। मुगल सम्राट बहादुर शाह तथा स्थानीय विद्रोहियों ने राजस्थानी राजाओं को स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व प्रदान करने हेतु आमंत्रित किया, पर इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया।
(2) राजस्थान के विद्रोहियों में आपसी एकता और सम्पर्क का अभाव था। कोटा, नसीराबाद, भरतपुर धौलपुर, टोंक आदि में अलग अलग समय पर क्रांति होने के कारण अंग्रेजों को विद्रोहियों से निपटने का अवसर मिल गया ।
(3) मारवाड, मेवाड और जयपुर आदि के नरेशों ने तात्या टोपे को किसी प्रकार का सहयोग नहीं दिया।
(4) राजस्थान की 18 रियासतों में संगठन और एकता का अभाव था। नेतृत्व के लिए जब मेवाड़ के महाराणा से सम्पर्क किया, तो नेतृत्व प्रदान करने के बजाय उन्होंने शासकों के पत्र-व्यवहार संबधी सारे कागजात ही ब्रिटिश अधिकारियों को साँप दिए ।
(5) राजस्थान अनेक देशी रियासतों में बंटा हुआ था। इस कारण उसमें क्रांतिकारियों का कोई केन्द्रीय संगठन नहीं था। उनमें नेतृत्व का भी सर्वथा अभाव था। क्रांतिकारियों के बीच आपस में सम्पर्क भी नहीं रहा था। उनमें त्याग और बलिदान की भावना तो थी किन्तु उनमें न तो अंग्रेजों जैसा रणकौशल ही था और न वे अंग्रेज सैनिकों के समान प्रशिक्षित थे। इसके अतिरिक्त क्रांतिकारियों को धन, रसद और हथियारों की कमी का भी सामना करना पड़ा।
(6) अंग्रेजों ने अन्य क्षेत्रों में हुई क्रांति का दमन करते हुए जून 1858 ई. तक उत्तर भारत के अधिकांशभागों पर पुनः अपना नियंत्रण कर लिया। इस कारण उन्होंने राजस्थान में हुई क्रांति का दमन करने केलिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी।
1857 की क्रांति की असफलता के परिणाम :
(1) ब्रिटिश सम्राट ने राजस्थान की सभी रियासतों में कम्पनी द्वारा की गई संधियां जारी रखी।
(2) सन् 1857 की क्रांति के असफल होने के बाद राजस्थान की रियासतें ब्रिटिश संरक्षण में चली गई।
(3) राजस्थान की जनता पर अब गुलामी का दोहरा अंकुश हो गया। एक तो वे रियासती राजाओं के अधीन थे, दूसरे अंग्रेजों का भी उन पर नियंत्रण हो गया। परिणामस्वरूप यह निश्चित हो गया कि निकट भविष्य में राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन का कोई भविष्य नहीं है।
(4) अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार के कारण भी लोगों में राष्ट्रीय जागृति का प्रादुर्भाव हुआ । स्वधर्म, स्वदेशी, स्वराज, स्वभाषा के फलस्वरूप लोगों में क्रांति की भावना पुनः पल्लवित हुई। इस भावना का बल प्रदान करने वालों में अर्जुनलाल सेठी, केसरीसिंह बारहठ, गोपालसिंह खरवा आदि अग्रणी माने जाते हैं। इस क्रांति की असफलता ने भावी संगठित आंदोलन की भूमिका तैयार कर दी।