एरिनपुरा और आउवा की क्रांति :
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा उठाने और उनकी सत्ता को चुनौती देने का काम मारवाड़ के जागीरदारों ने किया। एरिनपुरा में स्थित जोधपुर की सैनिक टुकड़ी को जब नसीराबाद में हुई क्रांति की सूचना मिली, तो उसने भी 21 अगस्त 1857 ई. को क्रांति का बिगुल बजा दिया।
क्रांतिकारियों ने एरिनपुरा स्टेशन को लूटा और मारवाड़ के रास्ते दिल्ली की ओर रवाना हो गए। जब क्रांतिकारी पाली पहुंचे, तो आउवा (पाली जिले में स्थित एक गांव) के ठाकुर कुशाल सिंह ने उन्हें अपनी सेवा में ले लिया। आउवा का ठाकुर मारवाड़ का शक्तिशाली सामन्त था। वह अंग्रेजों एवं जोधपुर के महाराजा दोनों का विरोधी था ।
ऐसा कहा जाता है कि मेवाड़ और मारवाड़ के अनेक सामन्त अपनी सेनाएं लेकर कुशाल सिंह की सहायता के लिए आउवा आ पहुंचे।जोधपुर के महाराजा ने सिंघवी कुशलराज के नेतृत्व में एक फौज अंग्रेजों का दमन करने हेतु आउवा भेजी। 8 सितंबर 1857 ई. को आउवा के ठाकुर व क्रांतिकारियों की सयुक्त सेना ने जोधपुर की राजकीय फौज को पराजित कर दिया। इस संघर्ष में किलेदार अनार सिंह मारा गया तथा सिंघवी कुशलराज जान बचाकर वहां से भाग खड़ा हुआ।
जोधपुर फौज की तोपें व बहुत सारी युद्ध सामग्री क्रांतिकारियों के हाथ लग गई। इस घटना के कुछ समय पश्चात ही ए. जी. जी. लॉरेन्स एक सेना लेकर स्वयं आउवा आया। 18 सितंबर को लॉरेन्स की सेना व क्रांतिकारियों के बीच भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें लॉरेन्स को पराजय का सामना करना पड़ा।
ब्रिटिश फौज को परास्त करने के बाद क्रांतिकारी दिल्ली की ओर कूच कर गए।जोधपुर के महाराजा ने सिंघवी कुशलराज के नेतृत्व में एक फौज अंग्रेजों का दमन करने हेतु आउवा भेजी। 8 सितंबर 1857 ई. को आउवा के ठाकुर व क्रांतिकारियों की सयुक्त सेना ने जोधपुर की राजकीय फौज को पराजित कर दिया।
इस संघर्ष में किलेदार अनार सिंह मारा गया तथा सिंघवी कुशलराज जान बचाकर वहां से भाग खड़ा हुआ। जोधपुर फौज की तोपें व बहुत सारी युद्ध सामग्री क्रांतिकारियों के हाथ लग गई। इस घटना के कुछ समय पश्चात ही ए. जी. जी. लॉरेन्स एक सेना लेकर स्वयं आउवा आया।
18 सितंबर को लॉरेन्स की सेना व क्रांतिकारियों के बीच भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें लॉरेन्स को पराजय का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश फौज को परास्त करने के बाद क्रांतिकारी दिल्ली की ओर कूच कर गए।जॉर्ज लॉरेन्स आउवा की पराजय को भूला नहीं था। इसलिए आउवा के ठाकुर के लिए उसने ब्रिगेडियर होम्स के नेतृत्व में एक विशाल सेना आउवा की ओर भेजी।
20 जनवरी 1858 से बदला लेने ई. को ब्रिगेडियर होम्स ने आउवा पर आक्रमण कर दिया। दोनों सेनाओं के बीच भीषण संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान ठाकुर कुशाल सिंह आउवा के किले को छोड़कर सलूम्बर चला गया। उसके जाते ही ब्रिटिश फौजों ने आउवा के किले पर अपना अधिकार कर लिया।
अंग्रेजों में बदले की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने पूरे गांव को बुरी तरह लूटा तथा आउवा के किले को बारूद से उड़ा दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने आउवा के मंदिरों और मूर्तियों को पूरी तरह नष्ट कर दिया तथा वहां के निवासियों पर भीषण अत्याचार किए।