राजस्थान के क्रांतिकारी|1857 के क्रांतिकारी

डूंगजी जवाहर जी

1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में सीकर क्षेत्र के काका-भतीजा डूंगजी-जवाहरजी प्रसिद्ध देशभक्त हुए। डूंगजी शेखावटी ब्रिगेड में रिसालेदार थे। बाद में वे नौकरी छोड़कर धनी लोगों से देश की आजादी के लिये धन मांगने लगे और धन नहीं मिलने पर उनके यहाँ डाका डालने लगे। इस धन से वे निर्धन व्यक्तियों की भी सहायता करते। इन दोनों ने अपने साथियों की सहायता से कई बार अंग्रेज छावनियों को भी लूटा।

डूंगजी के साले भैरूसिंह ने डूंगजी को भोजन पर अपने यहाँ बुलवाया और वहाँ अत्यधिक शराब पिलाकर उन्हें पकड़वा दिया। अंग्रेजों ने उन्हें आगरा के दुर्ग में बंद कर दिया। डूंगजी की पत्नी की फटकार से जवाहरजी ने उन्हें छुड़वाने की प्रतिज्ञा की। कहा जाता है कि लोटिया जाट और करणा मीणा अपनी वीरता और बुद्धिमता से डूंगजी को छुड़वाकर लाए। बीकानेर के पास घड़सीसर में अंग्रेजी फौज ने बीकानेर और जोधपुर राज्य की फौजों के साथ मिलकर डूंगजी-जवाहरजी को घेर लिया।

जवाहरजी तो भागकर बीकानेर रियासत के खैरखट्टा स्थानपर पहुंच गए, जहाँ महाराज रतनसिंह ने उन्हें प्रेमपूर्वक रखा। डूंगजी जैसलमेर में गिरदड़ा की काकीमैडी पहुंच गए, जहाँ जोधपुर की सेना ने उन्हें छलपूर्वक कैद करके अंग्रेज सेना को सौंप दिया। इससे लोगोंमें असंतोष की ज्वाला भड़क उठी। अंग्रेजों ने डूंगजी को वापस जोधुपर राज्य की सेना को सौंप दिया। जोधपुर के दुर्ग में ही दूंगजी का निधन हुआ।

#लोठुजी निठारवाल, सीकर (1804 – 1855)

लोठू निठारवाल का जन्म जाट परिवार में 1804 ई. में रींगस में हुआ था, जहाँ से वह, वहाँ केठाकुर से अनबन होने के कारण अपनी बहन के पास बठोठ में आ गए। यहाँ इनका सम्पर्क डूंगजी – जवाहरजी से हुआ।जब डूंगजी को अंग्रेजों ने गिरफ्तार करके आगरा की जेल में बंद कर दिया था, तो लोठू ने बालू नाई, सांखू लुहार व करणा मीणा आदि के साथ मिलकर डूंगजी को आगरा से रिहा करवाने की योजना बनाई और अंग्रेजों को चकमा देने के लिए अपने साथियों के साथ एक बारात के रूप में आगरा पहुँचे तथा अदम्य साहस का परिचय देते हुए डूंगजी को रिहा करवा लाए।

इसके बाद लोठूजी, डूंगजी, जवाहरजी के साथ अंग्रेज विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते रहे। 1855 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।

#अमरचंद बांठिया, बीकानेर (1793- 1858)

देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857ई.)में राजस्थान के प्रथम व्यक्ति जिन्हें ब्रिटिश सत्ता ने फाँसी पर लटकाया, वह राजस्थान निवासी अमरचंद बांठिया था,जो ग्वालियर में अपना व्यापार चलाता था। उन्होंने अपनी पूरी धन-सम्पत्ति ताँत्या टोपे को देने का प्रस्ताव किया जिससे वह आजादी की लड़ाई को चालू रख सके। यही कुर्बानी बाद मे उनकी फांसी का कारण बनी।

#विजय सिंह पथिक (1882 – 1954), बिजोलिया

भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी भूपसिंह (विजयसिंह पथिक) का जन्म 1882 में ग्राम गुठावली, जिला बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) में हुआ एवं इनकी कर्मभूमि राजस्थान थी। विजय सिंह पथिक ‘वीर भारत सभा’ एवं ‘राजस्थान सेवा संघ के संस्थापक एवं सम्पूर्ण भारत में किसान आंदोलन के जनक व चोटी के क्रान्तिकारी थे, जिनका गहरा सम्बन्ध बिजौलिया किसान आन्दोलन से था।

अजमेर में सशस्त्र क्रान्ति की क्रियान्विति, क्रान्तिकारियों की भर्ती व प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही ‘राजस्थान केसरी’, ‘नवीन राजस्थान’, तरुण राजस्थान’ आदि समाचार पत्रों के माध्यम से राजस्थान में जनजागृति फैलाने में अग्रणी भूमिका निभाई ।

अर्जुन लाल सेठी ( 1880 – 1941) जयपुर:

राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी अर्जुनलाल सेठी कीजन्मभूमि जयपुर थी। अर्जुनलाल सेठी ने राजस्थान में सशस्त्र क्रांति और जनजागृति का अलख जगायासेठी ने जयपुर में सन् 1905 ई. में ‘जैन शिक्षा प्रचारक समिति’ की स्थापना की और उसके तत्वावधान में ‘वर्धमान विद्यालय’, ‘वर्धमान छात्रावास’ और ‘वर्धमान पुस्तकालय’ चलाए, सेठी ने देश में भावी क्रान्ति के लिये युवकों को तैयार किया।

जोरावर सिंह, प्रतापसिंह,माणिकचन्द्र, मोतीचन्द, विष्णुदत्त आदि क्रान्तिकारी इन्हीं के विद्यालय से जुड़े थे। सेठी हार्डिंग बम काण्ड,आरा हत्याकाण्ड, काकोरी कार्रवाई से सम्बद्ध थे।अजमेर में रहते हुए ‘शूद्र मुक्ति’, ‘स्त्री मुक्ति’, ‘महेन्द्र कुमार’ आदि पुस्तकें लिखी । इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का प्रयास किया।

#केसरी सिंह बारहट (1872 – 1941), शाहपुरा

राजस्थान के प्रसिद्ध कवि एंव क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ की जन्मभूमि शाहपुरा एवं कर्मभूमि कोटा थी। इनका जन्म 1872 में शाहपुरा रियासत के ‘देवपुरा’ नामक गांव में हुआ।सन् 1903 में वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा आहूत दिल्ली दरबार में शामिल होने से रोकने के लिए उन्होंने उदयपुर के महाराणा फतेह सिंह को संबोधित करते हुए ‘चेतावनी रा चूंगटिया’ नामक तेरह सौरठे लिखे जो उनकी अंग्रेजों के विरुद्ध भावना की स्पष्ट अभिव्यक्ति थी।

ब्रिटिश सरकार की गुप्त रिपोर्टों में राजपूताना में विप्लव फैलाने के लिए केसरी सिंह बारहठ व अर्जुन लाल सेठी को खास जिम्मेदार माना गया | उन्होंने राजस्थान के सभी वर्गों को क्रान्तिकारी गतिविधियों से जोड़ने के लिए 1910 ई. में ‘वीरभारत सभा’ की स्थापना की।

राजस्थान में सशस्त्र क्रान्ति का संचालन किया तथा स्वतंत्रता की आग में अपने सम्पूर्ण परिवार को झोंक दिया।। श्री बारहठ ने अपने सहोदर जोरावर सिंह, पुत्र प्रतापसिंह एवंजामाता ईश्वरदान आसिया को रासबिहारी बोस के सहायक मास्टर अमीरचन्द की सेवा में क्रांति काव्यावहारिक अनुभव और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भेज दिया इन्होंने अगस्त, 1941 को अंतिम सांस ली ।

कुंवर प्रताप सिंह बारहट ( 1893 – 1918)

1893ई. में शाहपुरा में जन्मे कुंवर प्रताप सिंह को देशभक्ति विरासत में मिली थीं। इनके पिता केसरी सिंह बारहट और चाचा जोरावर सिंह बारहट प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद से प्रेणा लेकर देश को स्वतंत्र करवाने में जुट गए ।

वे रासबिहारी बोस का अनुसरण करते हुए क्रांतिकारी आंदोलन में सम्मिलित हुए। रास बिहारी बोस का प्रताप सिंह पर बहुत विश्वास था ।प्रतापसिंह बारहठ को बनारस काण्ड के संदर्भ में गिरफ्तार किया गया और सन् 1917 में बनारसषड्यंत्र अभियोग चलाकर उन्हें 5 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुई। बरेली के केंद्रीय कारागार में उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गई, ताकि अपने सहयोगियों का नाम उनसे पता किया जा सके, किन्तु उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया।

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